प्रचुर मात्रा में अंकुरित अनाज तथा हरी पत्तेदार सब्जियां क
सेवन करे । थोड़ी मात्रा में फलों का भी सेवन भी कर सकते हैं। ये सभी चीजें निश्चित
तौर पर, आपके पाचन तंत्र को शांत और तदुरुस्त करेंगी।
दमा -
दमा -
दमा के रोगियों के लिए सबसे जरूरी चीज यह है कि उनके बलगम (कफ)
को हटाकर उन्हें आराम दिया जाए। और इस मामले में उनके खानपान का विशेष ध्यान रखना जरूरी
है।
खाने पीने की इन चीजों से बचना चाहिए
दूध तथा और उससे बने हुए पदार्थ इसके अलावा कटहल, केला, पकाई हुई चुकंदर कभी न लें।
कच्चा चुकंदर भी ले सकते हैं। मौसमी फलियां या सेम, लोबिया आदि भी बहुत नुकसानदायक
हैं।
ये चीजें हैं फायदेमंद
नीम, तुलसी, शहद, भीगी हुई मूंगफली
कई लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें दमा के साथ-साथ बवासीर की भी होती है। किसी
भी व्यक्ति का इन दोनों रोगों का एक साथ होना बड़ा ही नुकसानदायक है। दमा एक शीतल (ठंडा)
रोग है जबकि बवासीर ऊष्ण। ऐसे रोग से पीड़ित लोग अगर गर्म चीज खा ले तो बवासीर की समस्या
बन जाती है और अगर वे कोई ठंडी चीज खा लेते हैं तो उनके दमा रोग के लक्षणों में काफी
दिक्कत बड है। यह स्थिति बेहद खतरनाक होती है।
इसके लिए आप मणिपूरक चक्र को ध्यान से देखें, यह शरीर को 2 हिस्सों में
विभाजीत करता है। इसी के अनुसार ऐसे रोगियों के शरीर का निचला आधा हिस्सा गर्म होता
है तथा ऊपरी आधा हिस्सा ठंडा हो चुका होता है। इसमें एक प्रकार के संतुलन की आवश्यकता
होती है। जिसके लिए सूर्य नमस्कार और कई ओर प्रकार के आसनों का अभ्यास करने से हम यह
संतुलन हासिल किया जा सकता है।
योगिक अभ्यास
योगिक अभ्यास
सूर्य नमस्कार और आसन: इन सब को करने
से रोगी के शरीर में एक संतुलन बना रहता है। जिन रोगियों को “साइनिसाइटिस” यानी
नजला और दमा रोग की समस्या है, उस रोग में यह नासिका
छिद्र बंद होने की दिक्कत को दूर करता है। इनको करने से शरीर के लिए आवश्यक सभी व्यायाम
हो जाते है। शरीर के लिए जरुरी ऊष्मा भी इनसे ही पैदा होती है। “सूर्य नमस्कार”
करने से शरीर के अन्दर इतनी ऊर्जा पैदा होती है कि इसका रोज अभ्यास करने वालों को बाहरी
की सर्दी का प्रभाव नहीं पड़ता |
प्राणायाम:
दमा कई प्रकार के होते हैं। कुछ संक्रमित होते हैं, तथा कुछ ब्रोंकाइल भी होते
हैं और कुछ साइकोसोमैटिक या मन:कायिक भी होते हैं। अगर रोगी मन:कायिक है तो
“ईशा” योग करने से वह ठीक हो सकता है। ईशा योगासन करने से इंसान दिमागी तौर से शांत
और सचेत हो जाता है और उसका दमा भी ठीक हो जाता है। अगर यह संक्रमण (एलर्जी) के
कारण है तो यह प्राणायाम करने से रोगी निश्चित तौर पर स्वस्थ हो सकता है। इस योग में जो “प्राणायाम” सिखाया जाता है, उससे आपको ब्रोंकाइल संबंधी
परेशानी भी कम हो जाती हैं। अगर 1 से 2 हफ्तों तक प्राणायाम का निरंतर सही तरीके से
अभ्यास किया जाए तो दमा के मरीजों को 75% तक का फायदा पहुचता है।
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