बुधवार, 18 जुलाई 2018

रोग और योग : मोटापा, दमा, बवासीर, मधुमेह

प्रचुर मात्रा में अंकुरित अनाज तथा हरी पत्तेदार सब्जियां क सेवन करे । थोड़ी मात्रा में फलों का भी सेवन भी कर सकते हैं। ये सभी चीजें निश्चित तौर पर, आपके पाचन तंत्र को शांत और तदुरुस्त करेंगी।
दमा -
दमा के रोगियों के लिए सबसे जरूरी चीज यह है कि उनके बलगम (कफ) को हटाकर उन्हें आराम दिया जाए। और इस मामले में उनके खानपान का विशेष ध्यान रखना जरूरी है।
खाने पीने की इन चीजों से बचना चाहिए
दूध तथा और उससे बने हुए पदार्थ इसके अलावा कटहल, केला, पकाई हुई चुकंदर कभी न लें। कच्चा चुकंदर भी ले सकते हैं। मौसमी फलियां या सेम, लोबिया आदि भी बहुत नुकसानदायक हैं।
ये चीजें हैं फायदेमंद
नीम, तुलसी, शहद, भीगी हुई मूंगफली
कई लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें दमा के साथ-साथ बवासीर की भी होती है। किसी भी व्यक्ति का इन दोनों रोगों का एक साथ होना बड़ा ही नुकसानदायक है। दमा एक शीतल (ठंडा) रोग है जबकि बवासीर ऊष्ण। ऐसे रोग से पीड़ित लोग अगर गर्म चीज खा ले तो बवासीर की समस्या बन जाती है और अगर वे कोई ठंडी चीज खा लेते हैं तो उनके दमा रोग के लक्षणों में काफी दिक्कत बड है। यह स्थिति बेहद खतरनाक होती है।

इसके लिए आप मणिपूरक चक्र को ध्यान से देखें, यह शरीर को 2 हिस्सों में विभाजीत करता है। इसी के अनुसार ऐसे रोगियों के शरीर का निचला आधा हिस्सा गर्म होता है तथा ऊपरी आधा हिस्सा ठंडा हो चुका होता है। इसमें एक प्रकार के संतुलन की आवश्यकता होती है। जिसके लिए सूर्य नमस्कार और कई ओर प्रकार के आसनों का अभ्यास करने से हम यह संतुलन हासिल किया जा सकता है।
योगिक अभ्यास
सूर्य नमस्कार और आसन: इन सब को करने से रोगी के शरीर में एक संतुलन बना रहता है। जिन रोगियों को “साइनिसाइटिस” यानी नजला और दमा रोग की समस्या है, उस रोग में यह नासिका छिद्र बंद होने की दिक्कत को दूर करता है। इनको करने से शरीर के लिए आवश्यक सभी व्यायाम हो जाते है। शरीर के लिए जरुरी ऊष्मा भी इनसे ही पैदा होती है। “सूर्य नमस्कार” करने से शरीर के अन्दर इतनी ऊर्जा पैदा होती है कि इसका रोज अभ्यास करने वालों को बाहरी की सर्दी का प्रभाव नहीं पड़ता |
प्राणायाम:
दमा कई प्रकार के होते हैं। कुछ संक्रमित होते हैं, तथा कुछ ब्रोंकाइल भी होते हैं और कुछ साइकोसोमैटिक या मन:कायिक भी होते हैं। अगर रोगी मन:कायिक है तो “ईशा” योग करने से वह ठीक हो सकता है। ईशा योगासन करने से इंसान दिमागी तौर से शांत और सचेत हो जाता है और उसका दमा भी ठीक हो जाता है। अगर यह संक्रमण (एलर्जी) के कारण है तो यह प्राणायाम करने से रोगी निश्चित तौर पर स्वस्थ हो सकता है। इस योग में जो “प्राणायाम” सिखाया जाता है, उससे आपको ब्रोंकाइल संबंधी परेशानी भी कम हो जाती हैं। अगर 1 से 2 हफ्तों तक प्राणायाम का निरंतर सही तरीके से अभ्यास किया जाए तो दमा के मरीजों को 75% तक का फायदा पहुचता है।

ऐसे अन्य स्टोरीज के लिए डाउनलोड करें: टैलेंटेड इंडिया ऐप |

Get Higher Profits By Free NCDEX Tips

Get Higher Profits By Free NCDEX Tips: Trifid Research provide Get Higher Profits By Free NCDEX Tips for huge profit.

सोमवार, 16 जुलाई 2018

लिवर रोग के कारण और जोखिम कारक



लिवर रोग क्या है?
लिवर शरीर का प्रमुख अंग है जिसका आकर एक मध्यम साइज़ की फूटबाल जैसा होता है| इसका मुख्य काम खाने को पचाने और शरीर से विषाक्त पदार्थो को बहार निकालने का होता है| यह शरीर में पेट के दाहिनी ओर रिब के निचे स्थित होता है |

लिवर से सबधित बीमारी या तो अनुवांशिक भी हो सकती है या फिर किसी संक्रमण, अत्यधिक शराब पीना आदि | इसको क्षति होने के कारण शरीर में मोटापा भी बड जाता है | कभी कभी लिवर को क्षति पहुचने से उस पर घाव भी बन जाते है जिसे मेडिकल भाषा में “सिरोसीस” कहते है| यह एक जानलेवा बिमारी है |

लिवर रोग के प्रकार –

  1. फैटी लिवर
  2. गैर अल्कोहल फैटी लिवर रोग
  3. हेपेटाईटीस ए
  4. हेपेटाईटीस बी
  5. हेपेटाईटीस सी
  6. पीलिया
  7. सिरोसीस
  8. अल्कोहलिक हेपेटाईटीस
  9. हेमोक्रोमेटोसीस
  10. अनुवांशिक लिवर रोग
  11. गिल्बर्ट्स सिंड्रोम
  12. लिवर केंसर
लिवर की बिमारी के लक्षण –

  1. लिवर रोग के लक्षण
  2. त्वचा और आँखों में पीलापन |
  3. पेट में दर्द और सुजन |
  4. टखनो और पैरो में सुजन |
  5. त्वचा में खुजली |
  6. मूत्र का गहरा रंग |
  7. गहरे रंग का मूत्र का होना या मल में खून आना |
  8. अत्यंत थकावट होना |
  9. मतली और उलटी |
  10. भूख कम लगाना |


लिवर रोग होने के कई कारण हो सकते है जैसे कि – 

संक्रमण – दुसरे किसी परजीवी और वायरस लिवर को संक्रमीत कर सकते है जिससे सुजन हो सकती है और इससे लिवर की काम करने की क्षमता कम हो जाती है | इसको क्षति पहुचने वाले वायरस वीर्य या रक्त, पानी, प्रदूषित भोजन या संक्रमीत व्यक्ति के संपर्क में आने से फ़ैल सकता है | इसमें संक्रमण फैलाने वल्र मुख्य वायरस हेपेटाईटीस है |

  1. हेपेटाईटीस ए
  2. हेपेटाईटीस बी
  3. हेपेटाईटीस सी
प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना – 

कई प्रकार के रोगों में प्रतिरक्षा प्रणाली ही शरीर के कई भागो की क्षति पहुचती है, और आपके लिवर को प्रभावित भी करती है| जैसे –

  1. ऑटोइमुयुं हेपेटाईटीस
  2. प्राथमिक बाईलारी सिरोसीस
  3. प्राइमरी स्केलेरोसिंग कोलिंजाईटीस
अनुवांशिकता –

माता या पिता से कुछ असामान्य जीन प्राप्त होने से भी आपके लिवर में कई हानिकारक पदार्थ उत्पन्न होने से भी लिवर को नुक्सान हो सकता है | जैसे –

  1. हेमोक्रोमैटोसीस |
  2. हाइपरक्स्लिरिया और आक्सोलोसीस |
  3. विल्सन रोग |
केंसर और अन्य बीमारिया

  1. लिवर केंसर
  2. बाईल डक्ट केंसर
अन्य कारण –

  1. लम्बे समय तक शराब का सेवन |
  2. लिवर में जमा होने वाला फेट |
ऐसे अन्य स्टोरीज के लिए डाउनलोड करें: टैलेंटेड इंडिया ऐप |

गुरुवार, 12 जुलाई 2018

हार्ट अटैक के बाद इस नए उपचार से ठीक हो जाएगा ह्रदय!

 

जैसे-जैसे दुनिया आगे बढती जा रही है वैसे-वैसे मेडिकल क्षेत्र में भी हमने आज महारत हासिल की है, वैज्ञानिकों ने हार्ट अटैक आने के बाद हृदय को चुस्त और दुरुस्त करने के लिए एक नए इलाज की खोज की है। इसकी साहयता से हार्ट के टिश्यू को दोबारा उत्पन्न किया जा सकता है। और इससे हार्ट के फेल होने के आसार से भी बचा जा सकता है। हार्ट अटैक के समय शरीर में ऑक्सीजन की कमी पड़ जाती है और हृदय की अधिकतर मांसपेशियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। जिससे शरीर, प्रतिक्रिया रूप में मृत कोशिकाओं को दूर करने के लिए “इम्यून सेल्स’ को भेजता है लेकिन, ये कोशिकाएं पहले से ही क्षतिग्रस्त हुए हृदय के अन्दर सूजन का बड़ा कारण बन जाती हैं इस कारण हार्ट के फेल होने का खतरा ओर भी बढ़ सकता है। 

ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के “शोधकर्ताओं“ ने एक चूहे पर अपना शोध किया और पाया कि हार्ट अटैक के बाद चूहे में “वीईजीएफ-सी” नामक प्रोटीन इंजेक्शन को हृदय में पहुंचाने से इसकी मांसपेशियों की क्षति को बहुत कम किया जा सकता है। ओर यही नहीं, हृदय की रक्त संचार गतिविधि या पंप करने की प्रकिया  को भी पहले की तरह आसानी से किया जा सकता है। और एक अच्छे "स्वास्थ" की शुरुआत की जा सकती है |

चूहों पर सफल रहा शोध

“जर्नल ऑफ द क्लीनिकल इनवेस्टिगेशन” में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने चूहों पर एक शोध किया। इसमें हार्ट अटैक पड़ने के बाद, चूहों में  वह वीईजीएफ-सी का प्रोटीन इंजेक्शन दिया गया। और यह पाया गया कि वीईजीएफ-सी प्रक्रिया जो लिम्फैटिक नामक प्रणाली का भाग है जो ह्रदय और ह्रदय से जुडी मांसपेशियों की क्षति को बहुत कम करता है। इस प्रणाली से मृत हुई कोशिकाओं को पुन: सुधारने और साफ़ करने के बाद बहुत सी प्रतिरक्षा कोशिकाओं को भी तुरंत साफ़ किया जा सकता है। इस इलाज से हृदय में बेहतर इलाज और दिल की पंपिंग काफी अच्छी हुई।

दवाओं का विकास करने का मार्ग प्रशस्त

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के “पॉल रिले” ने अपने अनुभव शेयर किये हे की, हमने कुछ साल पहले से ही दिल में “लिम्फैटिक” प्रणाली का निरिक्षण करना शुरू कर दिया था। तथा हम यह नहीं जानते थे कि यह हमारे दिल की मरम्मत के लिए इतना महत्वपूर्ण हो सकता है।" इस निरिक्षण ने हमें “लिम्फैटिक प्रणाली” के विकास को आगे और बढ़ावा देने और शरीर की प्रतिरक्षा कोशिकाओं को स्पष्ट करने के लिए, नई दवाओं का विकसीत करने के लिए एक नई दवा खोज कार्यक्रम चालू करने का रास्ता आसन किया है। इससे यह उम्मीद कि हम अगले 5 से 10 साल बाद हमारी खोज सफल होगी। हार्ट अटैक बाद ह्रदय की सभी मांशपेशियों को पूर्वावस्था की तरह स्वस्थ करना भी संभव होगा।

ऐसे अन्य स्टोरीज के लिए डाउनलोड करें: टैलेंटेड इंडिया ऐप |

बुधवार, 11 जुलाई 2018

आयुर्वेद या एलोपैथी : कौन है ज्याोदा असरदार?



“आयुर्वेद” में कहा जाता है कि धरती पर पाई जाने वाली हर प्रकार की जड़, पत्ता, तथा पेड़ की छाल का अपना एक औषधीय गुण होता है। हमने अभी केवल कुछ का ही उपयोग करना सीखा है। और बाकी का उपयोग करना हमें अभी भी सीखना है।

आज की देशी दवाओं, जिसे हम आयुर्वेद के रूप जानते है, इनमे इतना क्या प्रथक होता है? आयुर्वेद जीवन के एक अलग ही आयाम और हमारी समझ से ही पैदा होता है। इस प्रणाली का एक हिस्सा यह भी समझाता है कि आपका शरीर बस इसका एक ढेर हैं, जिसे इस धरती से इकट्ठा किया गया है। इस धरती की प्रकृति तथा पंचभूत - यानि की धरती को बनाने वाले पञ्च तत्व इस स्थूल शरीर में भी व्याप्त हैं। अगर, आप इस शरीर को सुरक्षित और सुनियोजीत तरीके से चलाना चाहते हैं, तो यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि आप शरीर के साथ जो क्रिया करें, उसका इस धरती के साथ भी संबंध हो।

सेहत, कोई आसान चीज नहीं जिसे हम सरलता से ठीक कर ले | यह एक ऐसी चीज है जो मनुष्य शरीर के अन्दर से पैदा होती है। क्योंकि, शरीर आपके अन्दर से बनता है। यह “गुण” इस धरती से आते हैं, लेकिन वे आपके भीतर से ही विकसित होते हैं। अगर आपको किसी भी चीज की मरम्मत का कोई काम करवाना या करना हो तो आपको स्वयं निर्माता के पास जाना चाहिए न कि किसी लोकल कारीगर के पास । “आयुर्वेद” का मूल तत्व यही है। 

आयुर्वेद से यदि अच्छे से समझे तो, यदि हम शरीर की अधिक गहराई में जाएं, तो यह शरीर भी अपने आप में संपूर्ण नहीं है। यह एक एक प्रकार की जारी प्रक्रिया है, जिसमें धरती भी शामिल है, जिस पर आप चलते हैं।

अगर, आप बहुत ही गंभीर स्थिति में हैं, तो आप किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास न जाते हुए एलोपैथी डॉक्टर के पास ही जाए | जब आपके पास ठीक होने का समय हो। आपातकाल वाली स्थिति में एलोपैथी में बेहतर व्यवस्था है।
अगर इसे ठीक से ना समझा जाए, तो आपके अंदर ये काम करने वाली ये छोटी – छोटी  चिकित्सा प्रणालियां कारगर नहीं होतीं। इस पूरी प्रणाली का हमेशा ध्यान रखे, बिना सिर्फ उसके एक ही पहलू पर कार्य करने की कोशिश फायदेमंद नहीं होती।

एक समग्रवादी प्रणाली का मकसद सिर्फ शरीर का पूर्ण रूप में उपचार करना नहीं होता है। जबकी इस  प्रणाली का मकसद जीवन का एक पूर्ण रूप में उपचार करना होता है, जिसमें हम जो खाते हैं पीते हैं सांस लेते हैं, सब कुछ शामिल होते हैं। इन चीजों का ध्यान रखे बिना आप, आयुर्वेद का पूर्ण लाभ नहीं ले सकते। अगर आयुर्वेद आपके जीवन और समाजों में एक जीवंत हकीकत बन जाता है, तो लोग देवताओं की तरह रह सकते हैं।

ऐसे अन्य स्टोरीज के लिए डाउनलोड करें: टैलेंटेड इंडिया न्यूज़ एप |