गुरुवार, 4 अक्तूबर 2018

Health News In Hindi





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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

पितृपक्ष / पितृदोष से मुक्ति के लिए पितृपक्ष में करें तर्पण-श्राद्ध, घर में आएगी खुशहाली


रिलिजन डेस्क. पितृपक्ष शुरू हो चुका है जो 7 अक्टूबर तक रहेगा। इस दौरान पितरों को शांत करने के लिए तर्पण-श्राद्ध किया जाता है। ऐसा करने से पितृदोष यानी हमारे पूर्वजों का ठीक से श्राद्ध कर्म ना होने के कारण घर में आने वाली परेशानियों से भी मुक्ति मिलती है। पितृदोष है या नहीं ये किसी इंसान की कुंडली से भी पता किया जाता है। इसका सीधा तरीका है कि अगर कुंडली में सूर्य या चंद्रमा के साथ राहु-केतु में से कोई एक ग्रह बैठा हो तो इसे पितृदोष कहा जाता है। ज्योतिष में सूर्य को पिता कहा गया है, चंद्रमा को माता। अगर इन दोनों ग्रहों में से किसी एक के साथ राहु या केतु हों तो ये ग्रह दूषित हो जाते हैं। इसे ही पितृदोष कहा जाता है। अगर पितृदोष हो तो कई समस्याएं आती हैं।
ये होता है पितृदोष का प्रभाव

जिस घर में किसी सदस्य को पितृदोष होता है उस घर में अक्सर कोई ना कोई बीमार रहता है।
  •         पितृदोष के कारण घर के बच्चों में हमेशा कलह होता है।
  •         जहां पितृदोष होता है वहां संतान पैदा होने में विलंब होता है।
  •         बिजनेस में लाभ नहीं होता, उधारी बहुत ज्यादा होती है।
  •         इंसान के पैसे उधारी में डूब जाते हैं या बेकार कामों में खर्च हो जाते हैं।
पितृ दोष के लिए उपाय

यदि कुंडली में प्रबल पितृ दोष हो तो पितरों का तर्पण अवश्य करना चाहिए। तर्पण मात्र से ही हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं।

वे हमारे घरों में आते हैं और हमको आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यदि कुंडली में पितृ दोष हो तो इन सोलह दिनों में तीन बार एक उपाय करिए। 

सोलह बताशे लीजिए। उन पर दही रखिए और पीपल के वृक्ष पर रख आइये। इससे पितृ दोष में राहत मिलेगी। यह उपाय पितृ पक्ष में तीन बार करना है।

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गुरुवार, 30 अगस्त 2018

Shri Krishna Janmashtami Story in Hindi

श्री कृष्णा जन्माष्टमी की कहानी 

कृष्ण जन्माष्टमी राजा कंस के युग से संबंधित है। लंबे समय पहले, कंस मथुरा का राजा था। वह बहन देवकी के एक चचेरे भाई थे वह अपनी बहन को गहरे दिल से प्यार करता था और कभी भी उसे उदास नहीं होने देता था।

वह अपनी बहन की शादी में दिल से शामिल हुआ और आनंद लिया। एक बार जब वह अपनी बहन के ससुराल घर जा रहा था। तभी उसे आकाश में छिपी आवाज़ से चेतावनी मिली कि “कंस, जिस बहन को तुम बहुत प्यार कर रहे हो वह एक दिन तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगी देवकी और वासुदेव का आठवां बच्चा तुझे मार डालेगा।

जैसे ही, उसे चेतावनी मिली, उसने अपने सैनिकों को अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को कारागार में रखने के लिए आदेश दिया। उसने  मथुरा के सभी लोगों के साथ क्रूरता से बर्ताव करना शुरू कर दिया। उसने घोषणा की कि “मैं अपनी बहन के सभी बच्चों  को, अपने हत्यारे को रास्ते से निकालने के लिए मार दूंगा” उसकी बहन ने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया, फिर दूसरा, तीसरा और फिर सातवां जो कि कंस के द्वारा एक-एक करके मारे गए।

बाद में देवकी अपने आठवें बच्चे के साथ गर्भवती हुई अर्थात कृष्ण जी जो कि (भगवान विष्णु का अवतार) थे । भगवान कृष्ण ने द्वापरयुग  में मध्य रात्रि में श्रावण के महीने में अष्टमी (आठवें दिन) को जन्म लिया । उस दिन से, लोगों ने उसी दिन कृष्णा जन्माष्टमी या कृष्णाष्टमी का त्यौहार मनाना शुरू कर दिया।

जब भगवान श्री कृष्ण नव पृथ्वी में जन्म लिया, एक चमत्कार सा हुआ, जेल के दरवाजे अपने आप खुल गये, रक्षक सो गए और एक छिपी हुई आवाज ने कृष्ण को बचाने के रास्ते के बारे में वासुदेव को बताया। वासुदेव ने कृष्णा को एक छोटी सी टोकरी में ले लिया और अंधेरे में मध्यरात्रि में एक बड़ी नदी से, गोकुल में अपने दोस्त नंद के पास ले गए।

उन्होंने एक बरसात की रात को पार किया जहां शेषनाग ने उन्हें मदद की। उन्होंने अपने बेटे को अपने दोस्त (यशोदा और नंद बाबा) की लड़की के साथ बदला और कंस की जेल वापस लौट आये। सभी दरवाजे बंद हो गए और कंस को संदेश भेज दिया गया कि देवकी ने एक लड़की को जन्म दिया था।

कंस आया और उस लड़की को पटक कर मारने की कोशिश की, उसी समय वह लड़की कंस के हांथों से अदृश्य हो कर आकाश में अपने असली रूप बिजली कन्या के रूप में प्रकट हुई और उसने चेतावनी दी और कहा – अरे मुर्ख कंस तुम्हारा हत्यारा तो बहुत सुरक्षित जगह पर बढ़ रहा है और जब भी तुम्हारा समय पूरा हो जाएगा, तब वो तुम्हारा वध कर देगा।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे। यशोदा और नंद के सुरक्षित हाथ में गोकुल में बाल कृष्ण धीरे-धीरे  बढ़ रहे थे। बाद में उन्होंने कंस की सभी क्रूरता को समाप्त कर दिया और कंस की जेल से अपने माता-पिता को मुक्त कर दिया। कृष्ण की विभिन्न शरारती लीलाओं से गोकुलावासी बहुत खुश थे। गोकुल में रहने वाले लोग इस त्योहार को गोकुलाष्टमी के रूप में मनाते हैं।

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सोमवार, 20 अगस्त 2018

मंगलवार, 14 अगस्त 2018

इस बार सावन में आएंगे 4 सोमवार

इस महीने की 28 जुलाई से सावन महीने की शुरुआत हो रही है. श्रावन या सावन मास को भोलेनाथ से जोड़कर देखा जाता है. यहां तक कि इसे भोलेनाथ का महीना ही कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस महीने में भोलेनाथ अपने भक्तों की हर इच्छा पूरी करते हैं. खासतौर से सोमवार व्रत करने वाले और उसकी विधिवत पूजन करने वाले जातकों को देवों के देव महादेव कभी निराश नहीं करते. जिनकी शादी नहीं हुई है, उन्हें भगवान शिव अच्छे वर का वरदान देते हैं और जिनकी हो चुकी है, उन्हें सुखमय वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देते हैं.

इस बार सावन में 4 सोमवार आएंगे. पहला सोमवार 30 जुलाई 2018 को है. दूसरा 06 अगस्त को और तीसरा सोमवार 13 अगस्त को है. इसी बीच 11 अगस्त को हरियाली अमावस्या भी है. चौथा और सावन का आखिरी सोमवार 20 अगस्त को है.

26 अगस्त को सावन का आखिरी दिन है. बहुत से लोग सावन या श्रावण के महीने में आने वाले पहले सोमवार से ही 16 सोमवार व्रत की शुरुआत करते हैं. सावन महीने की एक बात और खास है कि इस महीने में मंगलवार का व्रत भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती के लिए किया जाता है. श्रावण के महीने में किए जाने वाले मंगलवार व्रत को मंगला गौरी व्रत कहा जाता है|

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गुरुवार, 9 अगस्त 2018

सावन (श्रावण) महीने में नहीं करने चाहिए ये काम

1. शिवलिंग पर न चढ़ाएं हल्दी

शिवजी की पूजा करते समय ध्यान रखें कि शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ानी चाहिए। हल्दी जलाधारी पर चढ़ानी चाहिए। हल्दी स्त्री से संबंधित वस्तु है। शिवलिंग पुरुष तत्व से संबंधित है और ये शिवजी का प्रतीक है। इस कारण शिवलिंग पर नहीं, बल्कि जलाधारी पर हल्दी चढ़ानी चाहिए। जलाधारी स्त्री तत्व से संबंधित है और ये माता पार्वती की प्रतीक है।

2. दूध के सेवन से रखें परहेज


सावन में संभव हो तो दूध का सेवन न करें। यही बात बताने के लिए सावन में शिव जी का दूध से अभिषेक करने की परंपरा शुरू हुई होगी। वैज्ञानिक मत के अनुसार इन दिनों दूध वात बढ़ाने का काम करता है। अगर दूध का सेवन करना हो तब खूब उबालकर प्रयोग में लाएं। कच्चा दूध प्रयोग में नहीं लाएं। सावन में दूध से दही बनाकर सेवन कर सकते हैं। लेकिन भाद्र मास में दही से परहेज रखना चाहिए क्योंकि भाद्र मास में दही सेहत के लिए हानिकारक होता है।

3. सावन में हरी पत्तेदार सब्जी (साग)  खाना है वर्जित

स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सावन में कुछ चीजों को खाना वर्जित बताया गया है। ऐसी चीजों में पहला नाम साग का आता है। जबकि साग को सेहत के लिए गुणकारी माना गया है। लेकिन सावन में साग में वात बढ़ाने वाले तत्व की मात्रा बढ़ जाती है। इसलिए साग गुणकारी नहीं रह जाता है। यही कारण है कि सावन में साग खाना वर्जित माना गया है। दूसरा कारण यह भी है कि इन दिनों कीट पतंगों की संख्या बढ़ जाती है और साग के साथ घास-फूस भी उग आते हैं जो सेहत के लिए हानिकाक होते हैं। साग के साथ मिलकर हानिकारक तत्व हमारे शरीर में नहीं पहुंचे इसलिए सावन में साग खाने की मनाही की गई।

4. सावन में बैंगन खाना भी वर्जित माना गया है |

सावन में महीने में साग के बाद बैंगन भी ऐसी सब्जी है जिसे खाना वर्जित माना गया है। इसका धार्मिक कारण यह है कि बैंगन को शास्त्रों में अशुद्घ कहा गया है। यही वजह है कि कार्तिक महीने में भी कार्तिक मास का व्रत रखने वाले व्यक्ति बैंगन नहीं खाते हैं। वैज्ञानिक कारण यह है कि सावन में बैंगन में कीड़े अधिक लगते हैं। ऐसे में बैंगन का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए सावन में बैंगन खाने की मनाही है।

5. बुरे विचारों से बचें

सावन माह में किसी भी प्रकार के बुरे विचार से बचना चाहिए। बुरे विचार जैसे दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए योजना बनाना, अधार्मिक काम करने के लिए सोचना, स्त्रियों के लिए गलत सोचना आदि। इस प्रकार के विचारों से बचना चाहिए, अन्यथा शिवजी की पूजा में मन नहीं लग पाएगा। मन बेकार की बातों में ही उलझा रहेगा। शास्त्रों में स्त्रियों के लिए गलत बातें सोचना महापाप बताया गया है। सावन माह में अच्छे साहित्य या धर्म संबंधी किताबों का अध्ययन करना चाहिए, इससे बुरे विचार दूर हो सकते हैं।

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